OM NMAH SHIVAY
February, 04, 2018
पवित्र कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत हैं। आज तक भगवान शिव के घर "कैलाश पर्वत" के रहस्य को कोई सुलझा नहीं पाया।मानसरोवर झील के पास स्थित पवित्र कैलाश पर्वत पर शिवशम्भू का धाम हैं।
परम रम्य गिरवरू कैलासू l
सदा जहाँ शिव उमा निवासू ll
पवित्र कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं। यह दुनिया का सबसे रहस्यमयी पर्वत हैं, जो अप्राकृतिक शक्तियों का भण्ड़ार हैं।
१- एक्सिस मुंडी को ब्रह्माण्ड का केंद्र या दुनिया की नाभि के रूप में जाना जाता है। यह आकाश और पृथ्वी के बीच सम्बन्ध का एक विन्दु हैं, जहाँ चारों दिशायें मिल जाती हैं और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमयी पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बन्धित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान हैं, जहाँ अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता हैं और उन शक्तियों के साथ सम्पर्क कर सकते हैं।
२- इस पर्वत की ऊँचाई ६७१४ मीटर हैं। यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउण्ट एवरेस्ट के साथ मुकाबला तो नहीं कर सकता, लेकिन इसकी भव्यता ऊँचाई में नहीं, बल्कि इसके आकार में हैं। इसकी छोटी सी आकृति विराट शिवलिंग की तरह हैं। इस पर्वत पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती हैं। पवित्र कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध हैं,
परन्तु ११वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की कोशिश की थी, किन्तु वह सफल नहीं हो पाया।
३- पवित्र कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा हैं- सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर "झील" इसके आधार हैं।
पहला- पवित्र मानसरोवर झील है, जो दुनिया की शुद्धजल की उच्चत्तम झीलों में से एक हैं, जिसका आकार सूर्य के समान हैं।
दूसरा- राक्षसताल झील है, जो दुनिया की खारे पानी की उच्चत्तम झीलों में से एक हैं और जिसका आकार चन्द्रमा के समान हैं।
४- पवित्र मानसरोवर झील और राक्षसझील, ये दोनों सौर और चन्द्रबल को प्रदर्शित करते हैं, जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से हैं। जब इन्हें दक्षिण की तरफ देखते हैं, तो स्वास्तिक चिन्ह के रूप में देखा जा सकता हैं।
५- पवित्र कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक जारनिकोलाई रोमनोव और उनकी टीम ने तिब्बत के मन्दिरों में धर्मगुरूओं से मुलाकात की, तब उन्होंने बताया कि इस पवित्र कैलाश पर्वत के चारों और एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरूओं के साथ टेलीपैथी सम्पर्क करते हैं।
६- पुराणों के अनुसार यहाँ भगवान शिव का स्थाई निवास होने के कारण इस स्थान को १२ज्योतिर्लिङ्गों में सर्वश्रेष्ठ माना गया हैं। पवित्र कैलाश बर्फ से सटे २२०२८फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को पवित्र "कैलाश मानसरोवर" तीर्थ कहते हैं।
इस प्रदेश को मानसखण्ड़ भी कहते हैं। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता हैं, जो की 'ॐ' की प्रतिध्वनि करता हैं।
७- पाण्डवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था।
युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न, और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा- व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। कुछ लोगो का कहना हैं कि आदि शंकराचार्यजी ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।
८- गर्मी के दिनों में जब पवित्र मानसरोवर की बर्फ पिघलती हैं, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती हैं। श्रृद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज हैं। कोई भी व्यक्ति पवित्र मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले तो वह 'रूद्रलोक' पहुँच सकता हैं। इस पवित्र झील की परिधि ५२किलोमीटर है।
९- पवित्र मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील हैं, जो पुराणों में 'क्षीर सागर' के नाम से वर्णित हैं। क्षीर सागर कैलाश से ४०किलोमीटर की दूरी पर हैं और इसमें शेष शैय्या पर भगवान विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे हैं।
१०- पवित्र कैलाश पर्वत को 'गणपर्वत और रजतगिरि' भी कहते हैं और यह पर्वत स्वयंभू भी हैं। पवित्र कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप माना जाता हैं। यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ हैं-- जो चार धर्मों तिब्बतीधर्म, जैनधर्म, बौद्धधर्म और हिन्दूधर्म का आध्यात्मिक केन्द्र हैं।
११- पवित्र कैलाश पर्वत कुल ४८किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ हैं। पवित्र कैलाश परिक्रमा मार्ग १५५०० से १९५९० फुट की ऊँचाई पर स्थित हैं। पवित्र मानसरोवर से ४५किलोमीटर दूर दारचेन कैलाश परिक्रमा का आधार शिविर हैं। इस पवित्र कैलाश पर्वत की परिक्रमा सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होकर सबसे ऊँची चोटी डेशफू गोम्या पर पूर्ण होती हैं।
१२- यात्री ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके यात्री कठिन रास्ते से होते हुए डेरापुक पहुँचते हैं, जहां ठीक सामने पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं। यहाँ से पवित्र कैलाश पर्वत को देखने में ऐसे लगता हैं,
मानो भगवान शिव स्वंय बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता हैं।
१३- डोल्मापास तथा पवित्र मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का भजन-पूजन करते हैं। यहाँ कहीं-कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं। दिन में बौद्धभिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है, जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनो के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं एवं इसी स्थान पर भस्मासुर ने तप किया था और यहीं भस्म भी हुआ था।
१४- डोल्मा ऊंचा स्थान हैं। डोल्मा से नीचे बर्फ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादूघाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी आभा वाली गौरीकुण्ड झील हैं। यह कुण्ड हमेशा बर्फ से ढका रहता हैं। तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुण्ड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते और कुछ इसका पवित्र जल भी घर लेकर जाते हैं। साढ़े सात किलोमीटर परिधि तथा ८०फुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।
१५- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी हैं। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती हैं, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में रखकर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।
१६- यह पवित्र झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन हुई थी, इसी कारण इसे "मानस मानसरोवर" झील कहते हैं। दरअसल पवित्र मानसरोवर संस्कृत के मानस(मस्तिष्कद्ध) और सरोवर(झील) शब्द से बना हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ होता हैं--मन का सरोवर। ब्रह्ममुहूर्त(प्रात:काल ३ से ५ बजे) में देवतागण यहाँ स्नान करते हैं।
१७- महाराज मान्धाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षो तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतो की तलहटी में स्थित हैं। बौद्ध धर्मालम्बियों का मानना हैं कि इसके केन्द्र में एक वृक्ष हैं, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने सक्षम हैं। हिन्दू इसे 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा देते हैं।
१८- यह पवित्र झील ३२० किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई हैं। इसके उत्तर में श्री कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल हैं। पुराणों के अनुसार मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भूत प्राकृतिक झील इतनी ऊँचाई पर किसी भी देश में नहीं हैं।
१९- राक्षसताल लगभग २२५किलोमीटर क्षेत्र, ८४ किलोमीटर परिधि तथा १५०फुट गहरे में फैला हुआ हैं, यहां राक्षसों के राजा रावण ने शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षसताल कहते हैं। एक छोटा नदी गंगा-चू दोनो झीलों को तोड़ती हैं।
|| *ॐ नमः शिवाय* ||
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